जादूई डिब्बा
बहुत समय की बात है एक लकड़हारा अपनी पत्नी के साथ एक झोंपड़ी में रहता था। उनके पास रोज़ खाने के लिए पर्याप्त खाना भी नहीं होता था। हर रोज़ लकड़हारा चिड़ियों की मधुर आवाज़ के साथ उठता और अपनी कुल्हाड़ी लेकर काम पर निकल पड़ता।
सारा दिन वो कड़ी मेहनत करता और शाम को वो लकड़ियां बेचकर अपना गुज़ारा करता। लकड़हारा बहुत गरीब था लेकिन उसकी पत्नी बहुत लालची व स्वार्थी थी। वो हमेशा उससे लड़ती और गरीबी के ताने देती रहती। लकड़हारा इस तरह की बातों से बहुत दुखी होता।
एक दिन लकड़हारे ने निश्चय किया कि जब तक वो आज के लिए पर्याप्त धन नहीं कमा लेता वह घर वापस नहीं जायेगा। उसकी पत्नी के कहे हुए शब्द उसे बहुत कष्ट देते थे। वह कुल्हाड़ी को एक तरफ रख कर नदी के किनारे एक छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया। वह नहीं जानता था कि उसे क्या करना है।
लेकिन कठिन परिश्रम करने वाले को भगवान कभी अकेला नहीं छोड़ते। नदी के दूसरे किनारे पर एक पवित्र साधू कुटिया में रहते थे। उन्होंने लकड़हारे को इस तरह बैठा देखा तो वो उसके पास गए और जाकर पूछा कि तुम कौन हो और यहाँ क्यों आये हो। लकड़हारे ने जवाब दिया कि मैं एक बहुत ही गरीब लकड़हारा हूँ। मेरे पास इतने पैसे नहीं कि मैं अपनी पत्नी को पर्याप्त खाना दे सकूँ। मई तब तक घर नहीं जाऊंगा जब तक अपनी पत्नी के लिए पर्याप्त भोजन ना जुटा लूँ।
उस साधू को लकड़हारे पर बहुत दया आयी। उन्होंने उसे एक डिब्बा देते हुए कहा कि , "ये एक जादूई डिब्बा है। ये चाँदी के सिक्कों से भरपूर है। जब दिन भर की मेहनत के बाद तुम डिब्बे को तीन बार गोल आकार में घुमाओगे तब ये एक चांदी का सिक्का देगा। और इस डिब्बे को कभी भी खोलने का प्रयास मत करना।"
लकड़हारा ख़ुशी ख़ुशी घर जाकर पत्नी को साड़ी बातें बताता है। वो बहुत खुश हुई कि अब उन्हें भूखे नहीं मरना पड़ेगा। जीवन कुछ आरामपूर्वक निर्वाह होने लगा। लकड़हारा रोज़ काम पर जाता और शाम को रोज़ एक सिक्का मिलता।
एक दिन पत्नी को लालच आया। उसने सोचा मैं इस डिब्बे को खोलकर सभी सिक्के निक़ाल लेती हूँ, हम जल्दी ही अमीर बन जायेंगे। लकड़हारे की पत्नी ने डिब्बा खोला परन्तु दिब्बा तो खाली निकला। अपने लालच की वजह से उसने सब कुछ खो दिया। जब लकडहारा घर आया तो उसने डिब्बा टूटा हुआ देखा।अपनी पत्नी के लालच की वजह से उसे फिर से गरीबी को सहना पड़ा। इस कहानी की शिक्षा तो आप समझ ही गए होंगे कि लालच करना बुरी बात है।
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