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कहानी: फैसला | Faisla | Hindi Story - udaan96

          फ़ैसला 

          उदयपुर नामक एक गाँव था। वहां शिव नामक एक बड़ा व्यक्ति रहता था। उस गाँव में ही नहीं, आस - पास के शहरों में भी उसकी बहुत इज़्ज़त थी। सबको विश्वास था कि शिव न्याय करते हैं। पास के गाँव रामपुर से तीन लोग शिव के पास इन्साफ के लिए आए।

          शिव ने उनसे पूछा, "बताइये,आप लोग किस काम से आये हैं।" उनमे से एक बोला, "हुज़ूर , मेरा नाम  राजू है। मैं एक कुंहार हूँ और मिटटी के घड़े बनाता हूँ। घड़े बनाने के लिए हर बार मैं मिट्टी भूषण से ही खरीदता हूँ। घड़े बनाने के लिए कल सुबह जब मैंने मिट्टी चुनना शुरू किया  उसमे तीन कीमती हीरे मिले। मैं एक बहुत गरीब आदमी हूँ। मैं बहुत खुश हुआ कि भगवान् ने मेरी सुन ली। पर कल से भूषण कह रहा है कि हीरे उसके हैं। आप ही इंसाफ कीजिये हुजूर।"

          फिर शिव ने भूषण से पूछा कि क्या वो कुंहार सच कह रहा है। इस पर भूषण कहता है कि, "हुज़ूर ,वो सच कह रहा है लेकिन उसने एक बात छुपाई है। मैंने ये मिटटी राम से पैसे देकर खरीदी है लेकिन राजू ने मुझसे ये मिट्टी उधार ली है। उसने अभी तक मुझे पैसे नहीं दिए हैं। आप ही बताइये की राजू को जो हीरे मिले उस पर किसका हक़ है।"

          इतने में राम कहता है, "हुज़ूर, भूषण ने मिट्टी मुझसे ली है और उसने उसके पूरे पैसे भी दे दिए हैं। लेकिन उसके दिए पैसों में से एक नकली नोट निकला है। नकली नोट देने वाला उन हीरों का हक़दार कैसे हो सकता है।"

          इतने में भूषण कहता है कि, "मैंने इस से दस दिन पहले मिट्टी खरीदी थी। इन दस दिनों में तीन बार मेरी राम से मुलाक़ात हुई लेकिन उसने एक भी बार नकली नोट का ज़िक्र नहीं किया। हीरे मिलने की बात से उसके मन में खोट पैदा हो गया है। इस लिए राम की बातों का कोई महत्व नहीं है।"

          तब राजू कहता है कि, "हुज़ूर , राम और भूषण ,दोनों के मन में ही लालच पैदा हो गया है। भूषण से मिट्टी लेते वक़्त ही मैंने बता दिया था की मिट्टी के प्याले बिकने पर ही मैं पैसे दूंगा। फिर ही उसने मुझे मिट्टी बेचीं। लेकिन अब पैसे न देने की वजह से वो उन हीरों को अपना कह रहा है।"

          शिव ने तीनो की बात सुनने के बाद कहा कि वो हीरे उसके पास रख जाएँ और कल सुबह वो अपना फैसला सुनाएंगे।

          उस रात शिव सबसे पहले राम के घर जाता है और कहता है कि कल मैं अगर तुम्हारे पक्ष में फैसला सुनाऊ तो मुझे क्या मिलेगा। राम सोच विचार कर कहता है कि ठीक है , अगर मेरे पक्ष में फैसला सुनाओगे तो तुम उन तीन हीरों में से एक हीरा रख लेना। ये बात किसी को न बताने को कहकर शिव वहां से चला जाता है।

          फिर वो भूषण के घर जाता है और वही बात करता है जो उसने राम से कही थी। भूषण भी लालच में एक हीरा देने को तैयार हो जाता है।

          फिर शिव राजू के घर जाता है। उनके घर भोजन करने के बाद वो थोड़े चिंतित हुए उसे कहते हैं कि उनसे वो हीरे कहीं खो गए हैं। वो ये भी कहते है की कल फैसला वो उसके पक्ष में सुनाएंगे और उसे कांच के तीन नकली हीरे देंगे। उसके अगले दिन आकर तुम मुझसे उन असली हीरों की कीमत ले जाना।

          इतने में राजू कहता है कि आपको असली हक़दार कौन लगता है तो शिव राम का नाम लेते है। तो राजू उन्हें राम के हक़ में फैसला सुनाने को कहता है और कहता है कि आप उसे वो  नकली हीरे दे देना ये कह कर कि मैंने जो आपको हीरे दिए थे वो नकली ही थे।

          ये सुन कर  शिव मन में अपना फैसला ले चुके थे। फिर वो वहां से चल दिए और किसी घर में पनाह ली।

         अब अगले दिन फैसले की घड़ी थी। शिव ने अपना फैसला राजू के हक़ में सुनाया और वो रात वाली घटना सारे गाँव वालों को बताई। राम और भूषण के लालच पर गाँव वालों ने खूब फटकार लगाई। अंत में हीरे उसके सही हक़दार को मिल जाते हैं।

         शिक्षा :- हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए। हमे भगवान् ने जो दिया है उसी में खुश रहना चाहिए। 

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